मीडिया का आचरण ईमानदार होना चाहिए। विचार स्वतंत्र हैं परंतु तथ्य सही होने चाहिए;  प्रणब मुखर्जी

राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिनांक 16 नवंबर 2015 को दिए अपने अभिभाषण में मीडिया को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं थी। स्व. प्रणब मुखर्जी ने कहा….. मुझे भारतीय प्रेस परिषद द्वारा आयोजित किए जा रहे राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हुई है। मैं इस विशेष अवसर पर प्रेस परिषद के सभी सदस्यों तथा सम्पूर्ण मीडिया समुदाय को बधाई देता हूं। इस वर्ष की परिचर्चा का विषय विचारों की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में कार्टूनों एवं चित्रों का प्रभाव तथा महत्त्वष्है। मुझे ज्ञात है कि परिचर्चा दो प्रख्यात कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण और राजिंद्र पुरी के प्रति समर्पित है जो अब हमारे बीच नहीं हैं। मैं इन दोनों व्यक्तियों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जिन्होंने हमारे देश में कार्टून कला और सार्वजनिक जवाबदेही तथा सामाजिक आलोचना में अपार योगदान दिया। प्रेस परिषद और केरल कार्टून अकादमी ने इस अवसर पर मुझ पर केंद्रित रेखाचित्रों की एक प्रदर्शनी आयोजित की है। उन्होंने इसे इस वर्ष की परिचर्चा के विषय के व्यावहारिक प्रदर्शन के लिए इसका चुनाव किया है जो स्वागत और प्रशंसा योग्य है। कार्टून और रेखाचित्र इनका अवलोकन करने वाली जनता तथा उनमें स्थान पाने वालों के लिए श्रेष्ठ तनाव निवारक हैं। कार्टूनिस्ट समय की नब्ज पकड़ते हैं और उनकी कला बिना किसी को ठेस पहुंचाए व्यंग्य करने में छिपी है जबकि रेखाचित्रकार ब्रुश के द्वारा बिना तोड़े.मरोड़े ऐसी बात कह देते हैं जिसे लम्बे लेख भी नहीं कह पाते। मैं कई दशक से कार्टून और रेखाचित्र का विषय रहा हूं। धूम्रपान छोड़ने से पहले मुझे रेखाचित्रों में विशेष रूप से पाइप के साथ चित्रित किया जाता था। स्वयं के कार्टूनों का आनंद लेना और हंसना अच्छा लगता है। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय कार्टूनिस्ट विभूति वीं शंकर से कहते रहते थे शंकर मुझे बख्शना मत।ष्वह अक्सर गाड़ी से कॉफी पीने के लिए शंकर के घर जाया करते थे और कार्टून के विषय पर बातचीत किया करते थे। खुली मानसिकता और सही आलोचना की प्रशंसा हमारे महान राष्ट्र की प्रिय परंपरा है जिसे हमें सहेजना और सुदृढ़ करना चाहिए।

 प्रख्यात पत्रकारों समाचारपत्र छायाकारों और चित्रकारों के लिए प्रेस परिषद द्वारा स्थापित राष्ट्रीय पुरस्कारों के  प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं। इस प्रकार के प्रतिष्ठित पुरस्कार पेशे के समकक्ष साथियों और अग्रणियों की प्रतिभा मेधा और परिश्रम का सार्वजनिक सम्मान हैं। प्राप्तकर्ताओं को ऐसे पुरस्कारों को सहेजना और उन्हें महत्व देना चाहिए। संवेदनशील मन कई बार समाज की कुछ घटनाओं से व्यथित हो जाता है। भावनाएं तर्क पर हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति को बहस और चर्चा के जरिए अभिव्यक्त करना चाहिए। गौरवपूर्ण भारतीय के रूप में भारत के विचार तथा हमारे संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों में हमारा विश्वास होना चाहिए। भारत जरूरत पड़ने पर हमेशा आत्म सुधार करता रहा है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अंग है जिसे संविधान ने एक मूलभूत अधिकार के रूप में गारंटी दी है। इस अधिकार की सुरक्षा हमारा परम कर्तव्य है। लोकतंत्र में समय.समय पर अनेक चुनौतियां सामने आएंगी। इनसे एकजुट होकर निपटना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विधि की मूल भावना सदैव एक जीती जागती वास्तविकता बनी रहे। राष्ट्रीय प्रेस दिवस प्रत्येक वर्ष 16 नवम्बर को मनाया जाता है इस दिन भारतीय प्रेस परिषद ने एक स्वायत्त संवैधानिक और अर्ध न्यायिक संस्था के रूप में कार्य शुरू किया था। प्रेस परिषद को प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा यह सुनिश्चित करने की दोहरी जिम्मेदारी सौंपी गई है कि प्रेस अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग पत्रकारिता की नैतिकता और हमारे देश के विधिक ढांचे के दायरे में करे। भारतीय प्रेस परिषद ने वर्षों के दौरान प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने तथा समाचार माध्यमों में जनता का विश्वास और भरोसा पैदा करने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हमारे देश के समाचार पत्रों और एजेंसियों के विकास की जड़ें हमारे स्वतंत्रता संघर्ष में जमी हुई हैं। भारत में प्रेस न केवल सरकार की छत्रछाया बल्कि उन व्यक्तियों के समर्पण से विकसित हुई जिन्होंने औपनिवेशिक सरकार की शोषण और दमनकारी नीतियों से लड़ने के साधन के रूप में इसका इस्तेमाल किया। समाचार पत्र देशभर में समाज.सुधार आंदोलनों के मंच बन गए। यह गौरव का विषय है कि1780के मध्य से 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक तकरीबन हर भारतीय भाषा में 120 से ज्यादा समाचार पत्र और पत्रिकाएं आरंभ हुईं। इनमें से प्रत्येक प्रकाशन ने हमारी जनता तक स्वतंत्रता के आदर्श पहुंचाए तथा एक स्वतंत्र भारत का संदेश प्रसारित किया। भारत में पहला समाचार पत्र हिकीज गजट अथवा बंगाल गजट एक आयरिश जेम्स ऑगस्टस हिकी ने 29 जनवरी 1780 को शुरू किया था। इस साप्ताहिक राजनीतिक और व्यावसायिक पत्र ने स्वयं को सभी पक्षों के लिए खुला और अप्रभाविता के तौर पर घोषित किया था और इसकी सामग्री में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की आलोचना भी शामिल थी।1818 में स्थापित कलकत्ता जरनलष्का सम्पादक जेम्स सिल्क बकिंघम एक समाज सुधारक और राजा राम मोहन राय का घनिष्ठ सहयोगी था।1818 में स्थापित बंगाली समाचार दर्पण पहला क्षेत्रीय भाषा का अखबार था। टाइम्स ऑफ इंडिया 3 नवम्बरए 1838 को ष्द बॉम्बे टाइम्स एंड जरनल ऑफ कॉमर्स के तौर पर आरंभ हुआ। इसके संपादक रॉबर्ट नाइट भारतीयों के प्रति दुर्भावना और भारत की गरीबी मिटाने के लिए कुछ न करने के लिए अंग्रेज अधिकारियों को फटकार लगाया करते थे। अमृत बाजार पत्रिका की स्थापना 20 फरवरी 1868 में सिसिर घोष और मोती लाल घोष ने एक बंगाली साप्ताहिक के रूप में की। अन्याय और असमानता के विरुद्ध अपने अभियान के कारण यह एकदम लोकप्रिय हो गई। दमनकारी वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के प्रावधानों से बचने के लिए यह 21 मार्च 1878 में रातों.रात अंग्रेजी साप्ताहिक में बदल गई। हिन्दू की स्थापना विधि के विद्यार्थियों और शिक्षकों के एक समूह ट्रिपलिकेन सिक्स द्वारा 1878 में की गई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1881 में केसरी की स्थापना की दादा भाई नौरोजी ने 1883 में वायस ऑफ इंडिया की स्थापना की।1906 में विपिन चंद्र पाल ने वंदे मातरम आरंभ किया और इसका संपादन अरविंद घोष ने किया। गोपाल कृष्ण गोखले ने1911में हितवाद की स्थापना की 1881 में दयाल सिंह मजीठिया ने ट्रिब्यून शुरू किया। मोती लाल नेहरू ने 1919 में द इंडिपेंडेंट आरंभ किया तथा महात्मा गांधी ने 1904 में दक्षिण अफ्रीका में द इंडियन ओपिनियन तथा1919में भारत में नवजीवन और यंग इंडिया तथा 1932 में हरिजन की स्थापना की। ये अग्रदूत देश की चेतना के वाहक बने और अपने अनवरत अभियानों से उन्होंने स्वतंत्रता को स्वर दिया।

आज हमारे मीडिया का प्रभाव विश्वसनीयता और गुणवत्ता विश्व में सुविख्यात है। वर्षों के दौरान भारतीय मीडिया का आकार पहुंच और आय बढ़ गई है। उच्च साक्षरता स्तर तथा संचार प्रौद्योगिकियों की क्रांति से इसका प्रभाव और बढ़ गया है। नवीन मीडिया पारंपरिक दृश्य.श्रव्य डिजिटल और सामाजिक मीडिया का मिश्रण लेकर आया है। यह हमारे देश के सुदूर कोनों में भी जनता के विचारों आकांक्षाओं और व्यवहार को आकार देने का शक्तिशाली माध्यम बन गया है। यह मीडिया को एक अतिरिक्त दायित्व सौंपता है। मीडिया को जनहित के प्रहरी के तौर पर कार्य करना चाहिए तथा उपेक्षित लोगों की आवाज उठानी चाहिए। पत्रकारों को हमारी जनता के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रही अनेक बुराइयों और कष्टों को लोगों की जानकारी में लाना चाहिए। वस्तुगत और संतुलित समाचार मुहैया करवाते हुए उन्हें जनमत को गढ़ना और प्रभावित करना चाहिए। निराशा और विषाद को ही समाचारों में ज्यादा स्थान नहीं मिलना चाहिए। समाज में जो शुभ और श्रेष्ठ है उसे दिखाने के सचेत प्रयास करने चाहिए। इसे सकारात्मकता को मुखर करना चाहिए तथा बेहतरी के लिए बदलाव को प्रेरित करना चाहिए। मीडिया की ताकत को हमारी नैतिक दिशा निर्धारित करने तथा सार्वजनिक जीवन में उदारता मानवता और सौम्यता को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। सार्वजनिक जीवन को स्वच्छ बनाने में मीडिया की एक अहम भूमिका है। इसके लिए मीडिया का आचरण ईमानदार होना चाहिए। स्वतंत्रता और निष्ठा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और मीडिया सहित यह बात हममें से प्रत्येक पर लागू होती है। सनसनी को वास्तविक, सटीक और संतुलित रिपोर्टिंग का विकल्प नहीं बनाना चाहिए। विचार स्वतंत्र हैं परंतु तथ्य सही होने चाहिए। निर्णय देने विशेषकर उन मामलों में जिनमें यथोचित कानूनी प्रक्रिया पूरी होनी बाकी है में सावधानी बरतनी चाहिए। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जीवनवृत्ति और प्रतिष्ठा बनने में वर्षों लगते हैं परंतु इन्हें खराब होने में कुछ क्षण लगते हैं। यह कहा जाता है कि आरोप सुर्खी बनते हैं खंडन छोटे अक्षरों में छपता है और विरोधाभास सस्ते प्रचार के बीच छिप जाते हैं। मीडिया को जानना चाहिए कि यह अपने पाठकों और दर्शकों और उनके माध्यम से समूचे देश के प्रति जवाबदेह है। मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है जो लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं के सुविधा रक्षक और सहायक के रूप में कार्य करता है। यह सक्रिय लोकतंत्र के ताने.बाने का महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत 21वीं सदी की ओर अग्रसर है। ऐसे में यह अत्यावश्यक है कि भारत की स्वतंत्र प्रेस सशक्त और जीवंत बनी रहे। मुझे इस दिन उन हजारों पत्रकारों की याद आ रही है जो हमारे देश की जनता को नवीनतम और सटीक खबरें प्रदान करने के लिए देशभर में रात.दिन कड़ी मेहनत करते हैं। भारत का मीडिया समुदाय न केवल समाचार प्रदाता है बल्कि ऐसा शिक्षक भी है जो हमारे देशवासियों को सबल तथा देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाता है। मैं देश के प्रति सेवा के लिए आपका धन्यवाद करता हूं और आपके सभी भावी प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद
जय हिंद!

( राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति स्व. प्रणब मुखर्जी का दिनांक 16 नवंबर 2015 को दिया गया अभिभाषण)

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