नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए भारत के जीवंत और विविध मीडिया इकोसिस्टम पर प्रकाश डाला। उन्होंने आजादी की लड़ाई और फिर आपातकाल के दौरान प्रेस के संघर्ष और उनके योगदान की चर्चा की साथ ही डिजिटल मीडिया की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। अश्विनी वैष्णव ने अपने संबोधन में कहा, “आइए हम पिछली शताब्दी में दमनकारी ताकतों से आजादी के लिए दो बार किए गए संघर्ष में प्रेस के योगदान को याद करें। पहला, ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने के लिए लंबे समय तक चली लड़ाई। दूसरा, कांग्रेस सरकार की ओर से लगाए गए आपातकाल के दिनों में लोकतंत्र को बचाए रखने की जद्दोजहद।” केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार को मीडिया के सामने आने वाली चार बड़ी चुनौतियों के बारे में बात की. उन्होंने ‘बिग टेक’ से अधिक जवाबदेही और निष्पक्षता की अपील की. ‘बिग टेक’ को ‘टेक जायंट्स’ या ‘टेक टाइटन्स’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियां शामिल हैं- अल्फाबेट, अमेजन, एप्पल, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट. राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर दिल्ली में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए, केंद्रीय मंत्री ने फेक न्यूज, एल्गोरिथम बायस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फेयर कंपनसेशन को शीर्ष चिंताओं के रूप में सूचीबद्ध किया. ‘ लोकतंत्र के लिए खतरा है फेक न्यूज ‘ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्लेटफॉर्म ऑनलाइन पोस्ट की गई जानकारी को वैरिफाई नहीं करते हैं, जिसके कारण सभी प्लेटफॉर्म पर ‘झूठी और भ्रामक जानकारी’ फैल जाती है. उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और बिग टेक से गलत सूचना से निपटने और लोकतंत्र की रक्षा करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा, ‘फेक न्यूज का तेजी से प्रसार न केवल मीडिया के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि यह विश्वास को कमजोर करता है बल्कि यह लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ा खतरा है.’ अश्विनी वैष्णव ने कहा कि भारत में एक जीवंत प्रेस है। यह मुखर है। इसमें हर तरफ की राय होती है। कुछ बहुत मजबूत हैं। कुछ मध्यमार्गी हैं। उन्होंने कहा कि देश में 35,000 से अधिक रजिस्टर्ड दैनिक समाचार पत्र हैं। हजारों समाचार चैनल हैं। और तेजी से फैल रहा डिजिटल इकोसिस्टम मोबाइल और इंटरनेट के जरिए करोड़ों नागरिकों तक पहुंच रहा है। ‘ सेफ हार्बर पर विचार करने की जरूरत ‘ अश्विनी वैष्णव ने ‘सेफ हार्बर’ प्रावधान पर फिर से विचार करने का भी प्रस्ताव रखा, जो मेटा, एक्स, टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यूजर जेनरेटेड कंटेंट के दायित्व से बचाता है. उन्होंने तर्क दिया कि 1990 के दशक में बना एक प्रावधान, डिजिटल मीडिया की व्यापक पहुंच और प्रभाव को देखते हुए अब उपयुक्त नहीं हो सकता है.वैष्णव ने कहा कि फर्जी खबरों और अफवाहों का तेज प्रसार भी मीडिया और समाज के समक्ष बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, “यह न केवल मीडिया के लिए एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह उसकी विश्वसनीयता को कम करता है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी घातक है। चूंकि, मध्यवर्ती मंच यह सत्यापित नहीं करते हैं कि क्या पोस्ट किया गया है, इसलिए व्यावहारिक रूप से सभी मंचों पर बड़ी मात्रा में झूठी और भ्रामक जानकारी पाई जा सकती है। यहां तक कि जागरूक नागरिक माने जाने वाले लोग भी ऐसी गलत सूचनाओं के जाल में फंस जाते हैं।” मीडिया और समाज के सामने प्रमुख चुनौतियां मीडिया और समाज के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए वैष्णव ने कहा कि पारंपरिक मीडिया आर्थिक पक्ष पर नुकसान झेल रहा है, क्योंकि खबरें तेजी से पारंपरिक माध्यमों से डिजिटल माध्यमों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं। उन्होंने कहा, “पारंपरिक मीडिया में पत्रकारों की टीम बनाने, उन्हें प्रशिक्षित करने, खबरों की सत्यता जांचने के लिए संपादकीय प्रक्रियाएं एवं तरीके तैयार करने और विषय-वस्तु की जिम्मेदारी लेने के पीछे जो निवेश होता है, वह समय और धन दोनों के संदर्भ में बहुत बड़ा है, लेकिन ये मंच अप्रासंगिक होते जा रहे हैं, क्योंकि प्रसार क्षमता के लिहाज से मध्यवर्ती मीडिया माध्यमों को इन पर बहुत अधिक बढ़त हासिल है।” केंद्रीय मंत्री ने कहा, “इस मुद्दे के हल की जरूरत है। सामग्री तैयार करने में पारंपरिक मीडिया मंच जो मेहनत करते हैं, उसकी भरपाई उचित भुगतान के जरिये की जानी चाहिए।” स्मार्टफोन की भूमिका को स्वीकार करते हुए, जो हर व्यक्ति को एक संभावित सामग्री निर्माता (content creator) में बदलने का काम करता है, डॉ. मुरुगन ने गलत जानकारी (misinformation) का मुकाबला करने में अधिक जिम्मेदारी और नियमों (regulation) की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने यह भी दोहराया कि, हालांकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of speech and expression) संविधान द्वारा गारंटीकृत है, इसका प्रयोग सटीकता (accuracy) और नैतिक जिम्मेदारी (ethical responsibility) के साथ किया जाना चाहिए। संदेश यह है कि स्मार्टफोन और डिजिटल मीडिया की शक्ति बढ़ने के साथ, जिम्मेदारी और सही तरीके से इसका उपयोग करना उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि गलत जानकारी से बचा जा सके और नैतिकता को बनाए रखा जा सके। फेक न्यूज से निपटने के लिए सरकार की पहल डॉ. मुरुगन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के प्रयासों की प्रशंसा की। इनमें प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) के तहत फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना भी शामिल है, जिसका उद्देश्य समाचारों को प्रमाणित करना और गलत जानकारी का खंडन करना है। पत्रकारों के समर्थन के लिए सरकारी योजनाएं सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव संजय जाजू ने पत्रकारों का समर्थन करने के लिए सरकार की विभिन्न पहलों को उजागर किया। इनमें मान्यता, स्वास्थ्य और कल्याण योजनाएं और भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) जैसे संस्थानों के माध्यम से क्षमता निर्माण कार्यक्रम शामिल हैं। उन्होंने “प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियोडिकल्स एक्ट, 2023” जैसे सुधारों का उल्लेख किया, जो मीडिया विनियमों को आधुनिक बनाता है। उन्होंने सूचना की पहुंच में सुधार के प्रयासों जैसे नियमित प्रेस ब्रीफिंग, वेब स्क्रीनिंग और कॉन्फ्रेंस पर भी जोर दिया। उन्होंने एक निष्पक्ष, पारदर्शी और टिकाऊ प्रेस इकोसिस्टम के निर्माण के लिए सामूहिक प्रयासों की अपील की, जो पत्रकारिता को सत्य का प्रकाशस्तंभ, विविध आवाजों के लिए एक मंच और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में बनाए रखे। पत्रकारिता की अखंडता बनाए रखने में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की भूमिका अपने
आत्मनिर्भर भारतः राष्ट्र का पुनर्निर्माण दशा और दिशा
स्वतंत्रता सेनानी राम मनोहर लोहिया की याद में मीडिया एसोसिएशन फॉर सोशल सर्विस ने किया विचार गोष्ठी का आयोजननई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री और देश के पद्म पुरस्कार से सम्मानित हुकुमदेव नारायण यादव ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय डॉ राम मनोहर लोहिया ने अपना पूरा जीवन समाज के दबे पिछड़े लोगों के उत्थान में लगा दिया। उन्होंने समतामूलक समाज की स्थापना के लिए सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष किया। उनका सपना था कि समाज के आखिरी व्यक्ति तक रोटी, कपड़ा और मकान उपलब्ध हो। गरीब, किसान को उसका हक मिले। पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुम देवनारायण यादव 12 अक्टूबर को समाजवादी चिंतक महान स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी के निकट के सहयोगी और राष्ट्रवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया को याद करते हुए बोल रहे थे। लोहिया जी का निधन 12 अक्टूबर 1967 को विजयादशमी के दिन हुआ था। हुकुमदेव नारायण यादव के सानिध्य में स्वर्गीय लोहिया जी को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब दिल्ली में लोगों द्वारा श्रद्धांजलि दी गई। हुकुमदेव नारायण यादव स्वर्गीय लोहिया जी की याद में मीडिया एसोसिएशन फॉर सोशल सर्विस द्धारा आत्मनिर्भर भारत; राष्ट्र का पुनर्निर्माण दशा और दिशा विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता मीडिया एसोसिएशन फॉर सोशल सर्विस के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार मनोज वर्मा ने की। पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव ने कहा कि राम मनोहर लोहिया ने समतामूलक समाज की स्थापना के लिए सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार कल्याणकारी योजनाओं के जरिए स्वर्गीय लोहिया जी के सपने को साकार कर रही है। देश के सामने चुनौतियां भी हैं समस्या भी हैं लेकिन लोहिया जी का चिंतन इन समस्याओं के निराकरण के लिए हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने ने भारत में विनिर्माण का काम बड़ी संख्या में लोगों द्वारा किये जाने की जरूरत पर बल देते हुए समाजवादी चिंतक दिवंगत डॉ राम मनोहर लोहिया के उस समय के इस आग्रह का उल्लेख किया कि विदेश से बड़ी बड़ी मशीनें मंगानी हो तो मगायी जाये पर उसके साथ साथ तकनीक भी मंगाई जायें। विदेश से मंगायी गयी मशीन का रूपांतरण कर छोटी छोटी मशीन बनायी जाये ताकि उन रुपांतरित मशीनों को बड़ी संख्या में लोगों के हाथ में पहुंचा कर बड़ा उत्पादन किया जा सके। उन्होंने कहा कि लोहिया जी का यह विचार गांधी जी के ग्राम स्वराज और चरखा आंदोलन का समय के अनुसार आधुनिकीकरण है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास को विरासत से जोड़ने पर बल देते हैं जो पुरातन को नित नूतन बनाते रहने की हमारी सनातन परंपरा के अनुरूप है।वरिष्ठ पत्रकार मनोज वर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी स्वण् राम मनोहर लोहिया जी ने देश के निर्माण का जो दिशा दी उसी रास्ते पर चलते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव ने सड़क से संसद तक गांव गरीब किसान और वंचितों के हक की आवाज को बुलंद किया। भारतीय राजनीतिज्ञ व कर्मठ कार्यकर्त्ता के रूप में डॉ लोहिया ने समाजवादी राजनीति और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।उन्होंने अपना अधिकांश जीवन भारतीय समाजवाद के विकास के माध्यम से अन्याय के खिलाफ़ लड़ने के लिये समर्पित किया।लोहिया ने ऐसी पांच प्रकार की असमानताओं को चिह्नित किया जिनसे एक साथ लड़ने की आवश्यकता है। स्त्री और पुरुष के बीच असमानता, त्वचा के रंग के आधार पर असमानता ,जाति आधारित असमानता, कुछ देशों द्वारा दूसरे देशों पर औपनिवेशिक शासन,आर्थिक असमानता। वरिष्ठ पत्रकार मनोहर सिंह ने कहा कि भगवान ने राम ने मर्यादा का संदेश दिया और स्वतंत्रता सेनानी राम मनोहर लोहिया ने भी मर्यादा के साथ राजनीति और जीवन जीने का संदेश दिया। उन्होंने एक पार्टी नेता के तौर पर विभिन्न सामाजिक.राजनीतिक सुधारों की वकालत की जिसमें जाति व्यवस्था का उन्मूलन भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को मान्यता और नागरिक स्वतंत्रता का मज़बूती से संरक्षण शामिल है। लोहिया जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अर्थ ब्वॉय इको फ्रेंडली आरओ के अविष्कारक शैलेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि उनका मकसद पानी बचाना और हर किसी स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले ग्रीन मैन के नाम से विख्यात पर्यावरणविद् ट्री ट्रस्ट ऑफ इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष विजयपाल बघेल गैर सरकारी संगठन वाटर डाइजेस्ट की उपाध्यक्ष नेहा और उद्यमी तेजवीर सिंह भाटी आदि ने संबोधित किया। इस मौके पर हुकुम देव नारायण यादव ने स्टार्टअप अर्थब्वॉय इको फ्रेंडली आरओ सिस्टम्स प्रा लि द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लिये बिना बिजली से चलने वाले एक आरओ संयंत्र का लोकार्पण किया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र के लिए निर्मित अर्थ ब्वॉय इको फ्रेंडली जल शोधन मशीन के आविष्कारक शैलेंद्र सिंह चौहान को बधाई देते हुए कहा कि जल है तो जीवन है। इस दिशा में किया जा रहा कार्य अमूल्य है।
A House of Butterflies: Story about a Women’s Hostel
New Delhi; A House of Butterflies: Story about a Women’s Hostel is a novel written by journalist Nandini Singh . The story revolves around a group of young, single working women living in a hostel in Delhi. These ladies have reached the metropolis in pursuit of their dreams and face multi-pronged struggle: against their families, in their mostly male-dominated offices, the effort to keep themselves safe in the capital city as well as they face the huge task of survival inside the hostel, which has women from different religions, regions and rogues too. The hostel is like a home away from home for these young females, who struggle in the metropolis in pursuit of happiness, independence and to find true love. Some want to fulfil their ambitions at any cost, while others who are conservative have religious goals like a conversion on their minds. The book has a cast of girls whose lives become entwined during the four years of this narrative. Their stories are interlocked with the protagonist Barkha’s and have the hostel’s voice as the spine, which is the only male voice among women. The enchanting voice can be mischievous and meddling at times. On her first night at the hostel, Barkha hears a magical voice and soon after, she is dragged out of her bed to a ragging room, where new residents are stripped naked by seniors for a particular purpose. Among Barkha’s friends is Pia, who resembles a Bollywood actress and who falls in love with three men of different age groups but manages her affairs so well that each one of these three men believes he is the only one in her life. Yet she is not sure who to choose when it comes to settling down. Aru, a budding astrologer is obsessed with her virginity and makes several compromises for the same. Rekhdeep, a Sikh resident hates anybody with long hair because of childhood trauma and pursues an NRI without a bun. Her hair phobia turns her life upside down until one with a bun rescues her. Tara Conti, a fan of Bollywood movies, arrives from Italy to find an Indian husband with features resembling three Bollywood heroes. Her mother of Indian descent dictates her life and she could never muster guts to defy her mother in Italy until she discovers freedom one day here in Delhi. While Zinny, a conservative Muslim lawyer is on a mission to introduce her male Muslim friends to hostel women in order to find someone gullible to convert. Also in her personal quest to find a high caste Muslim man for herself, she meets a Mango Man and inspires a number of new mango varieties. Rosy, a young Christian struggles to make ends meet and to preserve her identity, but she is compelled to sacrifice all, even the statue of her Mother Mary to save her father. Once a young Sadhvi (nun), who was donated to a religious sect as a child, reaches this colourful hostel for a short duration, clad in a white sari and with a bald head. Very soon in the company of beautiful women, she learns to explore her emotions, the sensations inside her body temple and discovers there is another union too between a man and a woman, which is not the same as the union of Atman and Paramatman. As the novel weaves plots and subplots, a reader discovers a strong Persian connection too, which goes back to Gujarat, where roots of Persian culture exist since centuries. This book celebrates the Parsi community in the country even as the hostel is like a mini female India. The religious, regional and societal differences that we witness in real Indian world are very much visible in the story. The different viewpoints emanating from Kashmir are reflected in the story and goes to the extent of one section of Kashmiri women calling for ‘Independence’. A House of Butterflies: Story about a Women’s Hostel is an eye-opener. It reveals the world of young Indian women like never before exploring their personalities, identities, emotions, insecurities and deep fears. Set in Delhi, it reveals how the metropolis can be a dangerous place for single women and how their place of residence, their safe haven, the hostel is viewed by many men as a brothel. The author, Nandini Singh’s background as a journalist comes to the fore when we see satirical portions on India’s corrupt politicians and political system as a whole. The book also comes out to be a satire on the society we are living in and the belief systems that we are blindly following. Nandini Singh has herself lived in Delhi as a young journalist in two working women hostels and the novel is inspired from her personal experience. She has completed more than 20 years in journalism and most of these years she has lived in Germany and Britain working for prominent national and international media houses. She holds a Masterclass Diploma in Creative Writing awarded by the Britain’s University of East Anglia and the Guardian. (The author is a senior journalist. Views expressed are personal.)
मीडिया का आचरण ईमानदार होना चाहिए। विचार स्वतंत्र हैं परंतु तथ्य सही होने चाहिए; प्रणब मुखर्जी
राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिनांक 16 नवंबर 2015 को दिए अपने अभिभाषण में मीडिया को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं थी। स्व. प्रणब मुखर्जी ने कहा….. मुझे भारतीय प्रेस परिषद द्वारा आयोजित किए जा रहे राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हुई है। मैं इस विशेष अवसर पर प्रेस परिषद के सभी सदस्यों तथा सम्पूर्ण मीडिया समुदाय को बधाई देता हूं। इस वर्ष की परिचर्चा का विषय विचारों की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में कार्टूनों एवं चित्रों का प्रभाव तथा महत्त्वष्है। मुझे ज्ञात है कि परिचर्चा दो प्रख्यात कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण और राजिंद्र पुरी के प्रति समर्पित है जो अब हमारे बीच नहीं हैं। मैं इन दोनों व्यक्तियों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जिन्होंने हमारे देश में कार्टून कला और सार्वजनिक जवाबदेही तथा सामाजिक आलोचना में अपार योगदान दिया। प्रेस परिषद और केरल कार्टून अकादमी ने इस अवसर पर मुझ पर केंद्रित रेखाचित्रों की एक प्रदर्शनी आयोजित की है। उन्होंने इसे इस वर्ष की परिचर्चा के विषय के व्यावहारिक प्रदर्शन के लिए इसका चुनाव किया है जो स्वागत और प्रशंसा योग्य है। कार्टून और रेखाचित्र इनका अवलोकन करने वाली जनता तथा उनमें स्थान पाने वालों के लिए श्रेष्ठ तनाव निवारक हैं। कार्टूनिस्ट समय की नब्ज पकड़ते हैं और उनकी कला बिना किसी को ठेस पहुंचाए व्यंग्य करने में छिपी है जबकि रेखाचित्रकार ब्रुश के द्वारा बिना तोड़े.मरोड़े ऐसी बात कह देते हैं जिसे लम्बे लेख भी नहीं कह पाते। मैं कई दशक से कार्टून और रेखाचित्र का विषय रहा हूं। धूम्रपान छोड़ने से पहले मुझे रेखाचित्रों में विशेष रूप से पाइप के साथ चित्रित किया जाता था। स्वयं के कार्टूनों का आनंद लेना और हंसना अच्छा लगता है। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय कार्टूनिस्ट विभूति वीं शंकर से कहते रहते थे शंकर मुझे बख्शना मत।ष्वह अक्सर गाड़ी से कॉफी पीने के लिए शंकर के घर जाया करते थे और कार्टून के विषय पर बातचीत किया करते थे। खुली मानसिकता और सही आलोचना की प्रशंसा हमारे महान राष्ट्र की प्रिय परंपरा है जिसे हमें सहेजना और सुदृढ़ करना चाहिए। प्रख्यात पत्रकारों समाचारपत्र छायाकारों और चित्रकारों के लिए प्रेस परिषद द्वारा स्थापित राष्ट्रीय पुरस्कारों के प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं। इस प्रकार के प्रतिष्ठित पुरस्कार पेशे के समकक्ष साथियों और अग्रणियों की प्रतिभा मेधा और परिश्रम का सार्वजनिक सम्मान हैं। प्राप्तकर्ताओं को ऐसे पुरस्कारों को सहेजना और उन्हें महत्व देना चाहिए। संवेदनशील मन कई बार समाज की कुछ घटनाओं से व्यथित हो जाता है। भावनाएं तर्क पर हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति को बहस और चर्चा के जरिए अभिव्यक्त करना चाहिए। गौरवपूर्ण भारतीय के रूप में भारत के विचार तथा हमारे संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों में हमारा विश्वास होना चाहिए। भारत जरूरत पड़ने पर हमेशा आत्म सुधार करता रहा है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अंग है जिसे संविधान ने एक मूलभूत अधिकार के रूप में गारंटी दी है। इस अधिकार की सुरक्षा हमारा परम कर्तव्य है। लोकतंत्र में समय.समय पर अनेक चुनौतियां सामने आएंगी। इनसे एकजुट होकर निपटना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विधि की मूल भावना सदैव एक जीती जागती वास्तविकता बनी रहे। राष्ट्रीय प्रेस दिवस प्रत्येक वर्ष 16 नवम्बर को मनाया जाता है इस दिन भारतीय प्रेस परिषद ने एक स्वायत्त संवैधानिक और अर्ध न्यायिक संस्था के रूप में कार्य शुरू किया था। प्रेस परिषद को प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा यह सुनिश्चित करने की दोहरी जिम्मेदारी सौंपी गई है कि प्रेस अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग पत्रकारिता की नैतिकता और हमारे देश के विधिक ढांचे के दायरे में करे। भारतीय प्रेस परिषद ने वर्षों के दौरान प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने तथा समाचार माध्यमों में जनता का विश्वास और भरोसा पैदा करने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे देश के समाचार पत्रों और एजेंसियों के विकास की जड़ें हमारे स्वतंत्रता संघर्ष में जमी हुई हैं। भारत में प्रेस न केवल सरकार की छत्रछाया बल्कि उन व्यक्तियों के समर्पण से विकसित हुई जिन्होंने औपनिवेशिक सरकार की शोषण और दमनकारी नीतियों से लड़ने के साधन के रूप में इसका इस्तेमाल किया। समाचार पत्र देशभर में समाज.सुधार आंदोलनों के मंच बन गए। यह गौरव का विषय है कि1780के मध्य से 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक तकरीबन हर भारतीय भाषा में 120 से ज्यादा समाचार पत्र और पत्रिकाएं आरंभ हुईं। इनमें से प्रत्येक प्रकाशन ने हमारी जनता तक स्वतंत्रता के आदर्श पहुंचाए तथा एक स्वतंत्र भारत का संदेश प्रसारित किया। भारत में पहला समाचार पत्र हिकीज गजट अथवा बंगाल गजट एक आयरिश जेम्स ऑगस्टस हिकी ने 29 जनवरी 1780 को शुरू किया था। इस साप्ताहिक राजनीतिक और व्यावसायिक पत्र ने स्वयं को सभी पक्षों के लिए खुला और अप्रभाविता के तौर पर घोषित किया था और इसकी सामग्री में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की आलोचना भी शामिल थी।1818 में स्थापित कलकत्ता जरनलष्का सम्पादक जेम्स सिल्क बकिंघम एक समाज सुधारक और राजा राम मोहन राय का घनिष्ठ सहयोगी था।1818 में स्थापित बंगाली समाचार दर्पण पहला क्षेत्रीय भाषा का अखबार था। टाइम्स ऑफ इंडिया 3 नवम्बरए 1838 को ष्द बॉम्बे टाइम्स एंड जरनल ऑफ कॉमर्स के तौर पर आरंभ हुआ। इसके संपादक रॉबर्ट नाइट भारतीयों के प्रति दुर्भावना और भारत की गरीबी मिटाने के लिए कुछ न करने के लिए अंग्रेज अधिकारियों को फटकार लगाया करते थे। अमृत बाजार पत्रिका की स्थापना 20 फरवरी 1868 में सिसिर घोष और मोती लाल घोष ने एक बंगाली साप्ताहिक के रूप में की। अन्याय और असमानता के विरुद्ध अपने अभियान के कारण यह एकदम लोकप्रिय हो गई। दमनकारी वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के प्रावधानों से बचने के लिए यह 21 मार्च 1878 में रातों.रात अंग्रेजी साप्ताहिक में बदल गई। हिन्दू की स्थापना विधि के विद्यार्थियों और शिक्षकों के एक समूह ट्रिपलिकेन सिक्स द्वारा 1878 में की गई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1881 में केसरी की स्थापना की दादा भाई नौरोजी ने 1883 में वायस ऑफ इंडिया की स्थापना की।1906 में विपिन चंद्र पाल ने वंदे मातरम आरंभ किया और इसका संपादन अरविंद घोष ने किया। गोपाल कृष्ण गोखले ने1911में हितवाद की स्थापना की 1881 में दयाल सिंह मजीठिया ने ट्रिब्यून शुरू किया। मोती लाल नेहरू ने 1919 में
विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए मीडिया को बनना होगा अधिक जिम्मेदार-रंजना देसाई
पत्रकारिता के बदलते दौर में नैतिकता और मूल्य बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की अध्यक्ष जस्टिस ( रिटा. ) रंजना देसाई इससे काफी चिंतित हैं। फेक न्यूज और येलो जर्नलिज्म के बढ़ते चलन को लेकर उन्होंने पत्रिका के साथ बातचीत में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार साझा किए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तथ्य और सत्य आधारित पत्रकारिता के महत्व को रेखांकित करने के लिए वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूज पेपर्स एंड न्यूज पब्लिशर्स ने वैश्विक पहल की है। 28 सितम्बर को वैश्विक स्तर पर वर्ल्ड न्यूज़ डे मनाया गया।फेक न्यूज और तथ्यहीन रिपोर्टिंग पर सवालजस्टिस देसाई ने कहा कि कुछ मीडिया संस्थान टीआरपी सर्कुलेशन और वीडियो के व्यूज बढ़ाने के लिए झूठी और भ्रामक खबरें प्रसारित कर रहे हैं जिससे मीडिया की विश्वसनीयता पर असर पड़ा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पंजाब में हुए एक सामूहिक पारिवारिक हत्याकांड की कुछ हिंदी अखबारों में लचर और तथ्यहीन रिपोर्टिंग ने पत्रकारिता के स्तर पर गंभीर सवाल खड़े किए। जस्टिस देसाई ने जोर देकर कहा कि अच्छी पत्रकारिता के लिए सत्यता और तथ्यात्मकता बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव पाठकों और दर्शकों के मानस पर पड़ता है।मीडिया के लिए सख्त दिशा.निर्देश और आदेशउन्होंने कहा कि भारतीय प्रेस परिषद पत्रकारों और प्रेस की स्वतंत्रता को संरक्षित करने के लिए समय.समय पर दिशा.निर्देश जारी करती है लेकिन इनके उल्लंघन के मामले भी बढ़ रहे हैं। जस्टिस देसाई ने बताया कि ऐसे मामलों में परिषद को सख्त आदेश जारी करने पड़ते हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में मीडिया को अधिक जिम्मेदार बनाने के लिए ज्यादा सख्त दिशा.निर्देश तैयार किए जा रहे हैं।पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रताजस्टिस देसाई ने पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति परिषद की प्रतिबद्धता पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में कई पत्रकारों पर हमले हुए और कई की जान भी गई है। कई पत्रकारों को पुलिस की ओर से सुरक्षा मिलने की जगह प्रताड़ित किया गया है। ऐसे में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय प्रेस परिषद हर संभव प्रयास कर रही है ताकि वे बिना किसी डर के अपनी जिम्मेदारी निभा सकें।युवा पत्रकारों के लिए इंटर्नशिप कार्यक्रमजस्टिस देसाई ने कहा कि प्रेस परिषद न केवल मौजूदा पत्रकारों बल्कि भविष्य के पत्रकारों को भी नैतिक और जिम्मेदार पत्रकारिता के लिए तैयार कर रही है। परिषद ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन इंटर्नशिप कार्यक्रम चला रही है जिसमें पत्रकारिता के छात्रों और युवाओं को पत्रकारिता के आचरण के मानक की जानकारी दी जाती है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य उन्हें पत्रकारिता के मूल्यों के प्रति जागरूक करना है ताकि वे भविष्य में एक जिम्मेदार पत्रकार बन सकें।
पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ा संकट विश्वसनीयता
लोकतंत्र,राजकाज की यदि सबसे अच्छी व वांछित प्रणाली मानी जा रही है तो स्वतंत्र प्रेस या मीडिया उसकी आत्मा और पहचान कही जा सकती है। विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका की एक समान व्यवस्था होने के बावजूद यदि प्रेस स्वतंत्र न हो तो उसे लोकतांत्रिक राज्य नहीं माना जा सकता। यही कारण है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता है। राजनीतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में मीडिया की भूमिका को देखते हुए हर लोकत्रांत्रिक समाज में स्वतंत्र,निष्पक्षा एवं जीवंत प्रेस को मान्यता दी जाती है, उसके संरक्षण और प्रोत्साहन के कानूनी और दूसरे उपाय किए जाते हैं। प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता की गारंटी तभी हो सकती है जबकि उसका संचालन करने वाले और उसमें जुड़े संपादक, पत्रकार और संवाददाता अपने दायित्व व धर्म का निवाह करने को पूरी तरह स्वतंत्र हों।लेकिन आज एक तरफ जहां संचार क्रांति के चलते समाचारों के प्रचार प्रसार के नये नये माध्यम सामने आ रहे हैं वहीं नई चुनौतियां भी सामने आ रही है। संचार क्रांति ने मीडिया के स्वरूप को बदल कर रख दिया है।इसलिए तीसरे प्रेस आयोग की मांग लंबे समय से उठ रही है।पिछले कुछ समय में भारत में मीडिया का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट आधारित मीडिया को ध्यान में रखकर अध्ययन होना चाहिए। इसके लिए तीसरे प्रेस आयोग का गठन किए जाने की आवश्यकता है।उसके बाद नियमन के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। वर्तमान दौर में पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ा संकट उसकी विश्वसनीयता है और इसका प्रमुख वजह पत्रकारों का वित्तीय रूप से परतंत्र होना है। जिस पत्रकार की नौकरी और उसका वेतन सुरक्षित नहीं है, वह पत्रकार स्वतंत्र नहीं हो सकता। इसलिए पत्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी आवश्यक है। असल में प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एंव पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप चार जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई जिसने 16 नवंबर 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया।तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है।विश्व में आज लगभग 50 देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद है। भारत में प्रेस को वाचडॉग एंव प्रेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडॉग गया है। स्वाधीनता के बाद देश के विकास में प्रेस की भूमिका के महत्व को समझते हुए इसकी स्थिति व अवस्था तथा श्रमजीवी पत्रकारों की कार्य की दशाओं की जांच पड़ताल कर उसकी बेहतरी के उपाय सुझाने के लिए सरकार की ओर से दो प्रेस आयोग गठित किए जा चुके हैं। पहला आयोग न्यायमूर्ति राजाध्यक्ष की अध्यक्षता में 1950 के दशक के प्रारंभ में बना।दूसरे का गठन दूसरे का गठन आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार ने मई 1978 में गठित किया था। इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति पीके गोस्वामी थे। मोरारजी देसाई सरकार के पतन के बाद न्यायमूर्ति गोस्वामी ने परंपरा के अनुसार इस्तीफा दे दिया था। बाद में पुनः सत्ता र्में आई इंदिरा गांधी की सरकार ने 1980 में न्यायमूर्ति के के मैथ्यू के नेतृत्व में पूरा आयोग ही बदल दिया। मैथ्यू आयोग ने 1982 में अपनी रपट दी। प्रथम प्रेस आयोग ने प्रेस की स्वतंत्रता,पत्रकारिता के मानकों को बनाए रखने की व्यवस्था, प्रेस के स्वामित्व के स्वरूप , भाषाई और क्षेत्रीय अखबारों के प्रोत्साहन के तरीकों आदि पर विचार कर 1954 में प्रस्तुत अपनी रपट में बहुत सी महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं। भारतीय प्रेस परिषद, श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम और समाचार पत्रों के महापंजीयक की स्थापना जैसे अनेक सुझाव और सिफारिशें प्रथम प्रेस आयोग की उपलब्धियां हैं।दूसरे प्रेस आयोग की सिफारिशों ने लोगों को निराश किया। आयोग ने बदलते हालात में प्रेस और मीडियाकर्मियों की स्वतंत्रता के समक्ष नयी उभरती चुनौतियों की एक तरह से अनदेखी कर दी। न्यायमूर्ति मैथ्यू उन जजों में थे जिन्होंने आपातकाल का समर्थन किया था। उन्होंने प्रेस की आजादी की एक ऐसी अवधारणा प्रतिपादित की जिसमें ‘सरकार को प्रेस के नियमन की और अधिक छूट दे दी गयी।‘ प्रेस की स्वतंत्रता को मीडिया कंपनी यानी उसके शेयरधारकों की स्वतंत्रता मान ली गयी।यह तय है कि 1954 की परिस्थितियां 1982 तक आते आते बिल्कुल बदल गयी थीं। इसी तरह 1982 पर विचार करें तो 1995 एक नये युग का सूत्रपात कराता दिखेगा। बाजार और प्रौद्यागिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न युगांतकारी बदलावों के साथ साथ मीडिया के स्वरूप और स्वामित्व में पहले से अधिक बदलाव आ गए। व्यावसायिक हितों में टकराव का मुद्दा पहले की तरह या उससे भी कहीं अधिक गंभीर हो कर खड़ा हुआ है। आजदी के समय पत्र पत्रिकाओं की संख्या 6000 के करीब थी जो बढ़ कर एक लाख से भी अधिक हो गयी है। वीडियो समाचार पत्रिका से शुरू हुए निजी टीवी कार्यक्रमों के प्रसार आज केबल टीवी, उपग्रह टीवी से होते हुए डिजिटल टीवी तक पहुंच चुकी है। तीसरे प्रेस व मीडिया आयोग को प्रिंट के अलावा,टीवी, रेडियो और डिजिटल तथा सोशल मीडिया, इन सब का अध्ययन एवं विश्लेषण कर इनके लिए यथोचित मानकों और नियमों एवं नयी मार्गदर्शक एवं अपीलीय संस्थाओं की स्थापना की सिफारिशें और सुझाव प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। नया मीडिया आयोग इसलिए भी जरूरी है क्यों कि मीडिया अभिव्यक्ति का स्वतंत्र और खुला माध्यम न रह कर निहित स्वार्थ सिद्धि का साधन बनता जा रहा है।मीडिया घरानों में संपादक की स्थिति और हैसियत बदल गयी है।पत्रकारों के काम की दशाओं में आज भारी अंतर आ गया है। नयी नयी प्रौद्योगिकी के आने से वे एक से अधिक प्रकार के काम करने लगे हैं। इस सबसे बढ़ कर यह हुआ है कि अखबारी कंपनियों ने वर्किग जर्नलिस्ट एक्ट के प्रावधानों को किनारे लगा दिया है। इनकी भर्तियों में ठेका व्यवस्था का बोलबाला है और ठेके पर रखे गए पत्रकारों की नौकरी को किसी प्रकार का कानूनी संरक्षण नहीं रह गया है।उनसे यूनियन में शामिल न होने का गैरकानूनी बांड भरवाया जाता है।मीडिया प्रतिष्ठानों में अब ज्यादातर भर्तियां डिजिटल संस्करणों के लिए है और उनमें काम करने वालों की स्थिति कानूनी दृष्टि से निरीह है।कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन पर मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों की ज्यादातर अखबारों ने अनदेखी कर दी है।वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में संशोधन कर के टीवी, रेडियो, और डिजिटल तथा