नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए भारत के जीवंत और विविध मीडिया इकोसिस्टम पर प्रकाश डाला। उन्होंने आजादी की लड़ाई और फिर आपातकाल के दौरान प्रेस के संघर्ष और उनके योगदान की चर्चा की साथ ही डिजिटल मीडिया की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। अश्विनी वैष्णव ने अपने संबोधन में कहा, “आइए हम पिछली शताब्दी में दमनकारी ताकतों से आजादी के लिए दो बार किए गए संघर्ष में प्रेस के योगदान को याद करें। पहला, ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने के लिए लंबे समय तक चली लड़ाई। दूसरा, कांग्रेस सरकार की ओर से लगाए गए आपातकाल के दिनों में लोकतंत्र को बचाए रखने की जद्दोजहद।” केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार को मीडिया के सामने आने वाली चार बड़ी चुनौतियों के बारे में बात की. उन्होंने ‘बिग टेक’ से अधिक जवाबदेही और निष्पक्षता की अपील की. ‘बिग टेक’ को ‘टेक जायंट्स’ या ‘टेक टाइटन्स’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियां शामिल हैं- अल्फाबेट, अमेजन, एप्पल, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट. राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर दिल्ली में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए, केंद्रीय मंत्री ने फेक न्यूज, एल्गोरिथम बायस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फेयर कंपनसेशन को शीर्ष चिंताओं के रूप में सूचीबद्ध किया. ‘ लोकतंत्र के लिए खतरा है फेक न्यूज ‘ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्लेटफॉर्म ऑनलाइन पोस्ट की गई जानकारी को वैरिफाई नहीं करते हैं, जिसके कारण सभी प्लेटफॉर्म पर ‘झूठी और भ्रामक जानकारी’ फैल जाती है. उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और बिग टेक से गलत सूचना से निपटने और लोकतंत्र की रक्षा करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा, ‘फेक न्यूज का तेजी से प्रसार न केवल मीडिया के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि यह विश्वास को कमजोर करता है बल्कि यह लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ा खतरा है.’ अश्विनी वैष्णव ने कहा कि भारत में एक जीवंत प्रेस है। यह मुखर है। इसमें हर तरफ की राय होती है। कुछ बहुत मजबूत हैं। कुछ मध्यमार्गी हैं। उन्होंने कहा कि देश में 35,000 से अधिक रजिस्टर्ड दैनिक समाचार पत्र हैं। हजारों समाचार चैनल हैं। और तेजी से फैल रहा डिजिटल इकोसिस्टम मोबाइल और इंटरनेट के जरिए करोड़ों नागरिकों तक पहुंच रहा है। ‘ सेफ हार्बर पर विचार करने की जरूरत ‘ अश्विनी वैष्णव ने ‘सेफ हार्बर’ प्रावधान पर फिर से विचार करने का भी प्रस्ताव रखा, जो मेटा, एक्स, टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यूजर जेनरेटेड कंटेंट के दायित्व से बचाता है. उन्होंने तर्क दिया कि 1990 के दशक में बना एक प्रावधान, डिजिटल मीडिया की व्यापक पहुंच और प्रभाव को देखते हुए अब उपयुक्त नहीं हो सकता है.वैष्णव ने कहा कि फर्जी खबरों और अफवाहों का तेज प्रसार भी मीडिया और समाज के समक्ष बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, “यह न केवल मीडिया के लिए एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह उसकी विश्वसनीयता को कम करता है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी घातक है। चूंकि, मध्यवर्ती मंच यह सत्यापित नहीं करते हैं कि क्या पोस्ट किया गया है, इसलिए व्यावहारिक रूप से सभी मंचों पर बड़ी मात्रा में झूठी और भ्रामक जानकारी पाई जा सकती है। यहां तक कि जागरूक नागरिक माने जाने वाले लोग भी ऐसी गलत सूचनाओं के जाल में फंस जाते हैं।” मीडिया और समाज के सामने प्रमुख चुनौतियां मीडिया और समाज के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए वैष्णव ने कहा कि पारंपरिक मीडिया आर्थिक पक्ष पर नुकसान झेल रहा है, क्योंकि खबरें तेजी से पारंपरिक माध्यमों से डिजिटल माध्यमों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं। उन्होंने कहा, “पारंपरिक मीडिया में पत्रकारों की टीम बनाने, उन्हें प्रशिक्षित करने, खबरों की सत्यता जांचने के लिए संपादकीय प्रक्रियाएं एवं तरीके तैयार करने और विषय-वस्तु की जिम्मेदारी लेने के पीछे जो निवेश होता है, वह समय और धन दोनों के संदर्भ में बहुत बड़ा है, लेकिन ये मंच अप्रासंगिक होते जा रहे हैं, क्योंकि प्रसार क्षमता के लिहाज से मध्यवर्ती मीडिया माध्यमों को इन पर बहुत अधिक बढ़त हासिल है।” केंद्रीय मंत्री ने कहा, “इस मुद्दे के हल की जरूरत है। सामग्री तैयार करने में पारंपरिक मीडिया मंच जो मेहनत करते हैं, उसकी भरपाई उचित भुगतान के जरिये की जानी चाहिए।” स्मार्टफोन की भूमिका को स्वीकार करते हुए, जो हर व्यक्ति को एक संभावित सामग्री निर्माता (content creator) में बदलने का काम करता है, डॉ. मुरुगन ने गलत जानकारी (misinformation) का मुकाबला करने में अधिक जिम्मेदारी और नियमों (regulation) की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने यह भी दोहराया कि, हालांकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of speech and expression) संविधान द्वारा गारंटीकृत है, इसका प्रयोग सटीकता (accuracy) और नैतिक जिम्मेदारी (ethical responsibility) के साथ किया जाना चाहिए। संदेश यह है कि स्मार्टफोन और डिजिटल मीडिया की शक्ति बढ़ने के साथ, जिम्मेदारी और सही तरीके से इसका उपयोग करना उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि गलत जानकारी से बचा जा सके और नैतिकता को बनाए रखा जा सके। फेक न्यूज से निपटने के लिए सरकार की पहल डॉ. मुरुगन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के प्रयासों की प्रशंसा की। इनमें प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) के तहत फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना भी शामिल है, जिसका उद्देश्य समाचारों को प्रमाणित करना और गलत जानकारी का खंडन करना है। पत्रकारों के समर्थन के लिए सरकारी योजनाएं सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव संजय जाजू ने पत्रकारों का समर्थन करने के लिए सरकार की विभिन्न पहलों को उजागर किया। इनमें मान्यता, स्वास्थ्य और कल्याण योजनाएं और भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) जैसे संस्थानों के माध्यम से क्षमता निर्माण कार्यक्रम शामिल हैं। उन्होंने “प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियोडिकल्स एक्ट, 2023” जैसे सुधारों का उल्लेख किया, जो मीडिया विनियमों को आधुनिक बनाता है। उन्होंने सूचना की पहुंच में सुधार के प्रयासों जैसे नियमित प्रेस ब्रीफिंग, वेब स्क्रीनिंग और कॉन्फ्रेंस पर भी जोर दिया। उन्होंने एक निष्पक्ष, पारदर्शी और टिकाऊ प्रेस इकोसिस्टम के निर्माण के लिए सामूहिक प्रयासों की अपील की, जो पत्रकारिता को सत्य का प्रकाशस्तंभ, विविध आवाजों के लिए एक मंच और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में बनाए रखे। पत्रकारिता की अखंडता बनाए रखने में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की भूमिका अपने